Veda Vijnaana Vishtaram

वेद विज्ञान विष्टरम् - स्वधर्म विभागः

Swadharma Department (Prayers, Daily Rituals, Puja/ Homa/ Abhisheka)

Nitya Parayana Mantra Course



Links of Nitya Parayana Mantras

1) श्रीदत्त स्तवः.. 4

2) अष्टलक्ष्मी स्तुतिः... 5

3) आदित्य हृदय स्तोत्रम्. 6

4) श्री राम प्रार्थनम्. 11

5) महालक्ष्म्यष्टकम्. 14

6) रामायण संक्षेपः.. 15

7) प्रातःकाले पठनीयाः... 29

8) सुप्रभात श्लोकाः.... 30

9) स्नानकाले पठनीयाः... 31

10) भोजन समये पठनीयाः... 31

11)   गृहान्निर्गमन समये पठनीयाः... 32

12)   निद्रा काले पठनीयाः... 33

13)   गणपति प्रार्थनम्. 34

14)   रोग पीडा नाशक स्कन्द स्तोत्रम्. 35

15)   शिव स्तोत्रम्. 35

16)   शिव पंचाक्षरी स्तोत्रम्. 36

17)   परमेश्वर पञ्चमुख ध्यानम्. 37

18)   दिग्रक्षणम्. 39

19)   विष्णु स्तोत्रम्. 39

20)   देवीस्तोत्रम्. 40

21)   हनुमत् स्तोत्रम्. 45

22)   नवग्रह स्तोत्रम्. 46

23)   हयग्रीव स्तोत्रम्. 47

24)   दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम्. 47

25)   सद्गुरु दत्तात्रेय स्तोत्रम्. 48

26)   शंकराचार्य स्तोत्रम्. 48

27)   मङ्गळाचरणम्. 48

28)   समाप्तिः... 50

1)श्रीदत्त स्तवः

दत्तात्रेयं महात्मानं वरदं भक्त वत्सलम्।

         प्रपन्नार्ति हरं वन्दे स्मर्तृगामी सनोवतु।। 1

दीनबन्धुं कृपासिन्धुं सर्वकारण कारणम्।

         सर्वरक्षा करं वन्दे स्मर्तृगामी सनोवतु।। 2

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणम्।

         नारायणं विभुं वन्दे स्मर्तृगामी सनोवतु।।       3

सर्वानर्थहरं देवं सर्वमंगळ मंगळम्।।     

         सर्वक्लेश हरं वन्दे स्मर्तृगामी सनोवतु।। 4

ब्रह्मण्यं धर्मतत्वज्ञं भक्तकीर्ति विवर्धनम्।

         भक्ताभीष्ट प्रदं वन्दे स्मर्तृगामी सनोवतु।।        5

शोषणं पाप पंकस्य दीपनं ज्ञानतेजसः।

         तापप्रशमनं वन्दे स्मर्तृगामी सनोवतु।। 6

सर्वरोग प्रशमनं सर्वपीडा निवारणम्।

         विपदुद्धरणं वन्दे स्मर्तृगामी सनोवतु।।  7

जन्मसंसार बंधघ्नं स्वरूपानन्द दायकम्।

         निश्रेयस पदं वन्दे स्मर्तृगामी सनोवतु।। 8

जयलाभयशः काम दातु र्दत्तस्य यस्स्तवम्।

         भोगमोक्षप्रदस्येमं प्रपठेत् स कृती भवेत्।। 9      

श्री गणेशायनमः श्रीसरस्वत्यैनमः

श्रीपादवल्लभ नरसिंह सरस्वती श्रीगुरु दत्तात्रेयाय नमः

2)अष्टलक्ष्मी स्तुतिः

रथमध्या मश्वपूर्वां गज नाद प्रबोधिनीम्।

साम्राज्यदायिनीं देवीं गजलक्ष्मीं नमाम्यहम्।।    1

धनमग्नि-र्धनं वायु-र्धनं भूतानि पंच च।

प्रभूतैश्वर्य सन्धात्रीं धनलक्ष्मीं नमाम्यहम्।।                2

पृथ्वी गर्भ समुद्भिन्न नानाव्रीहि स्वरूपिणीम्।

पशुसंपत्स्वरूपां च धान्यलक्ष्मीं नमाम्यहम्।।     3

न मात्सर्यं न च क्रोधो न भीतिर्न च भेद धीः।

यद्भक्तानां विनीतानां धैर्यलक्ष्मीं नमाम्यहम्।।              4

पुत्रपौत्र स्वरूपेण पशुभृत्यात्मना स्वयम्।

संभवन्तीञ्च सन्तान लक्ष्मीं देवीं नमाम्यहम्।।     5

नाना विज्ञान सन्धात्रीं बुद्धि शुद्धि प्रदायिनीम्।

अमृतत्व प्रदात्रीं च विद्यालक्ष्मीं नमाम्यहम्।।            6

नित्यसौभाग्य सौशील्यं वरलक्ष्मी र्ददाति या।

प्रसन्नां स्त्रैण सुलभा मादिलक्ष्मीं नमाम्यहम्।।     7

सर्वशक्तिस्वरूपाञ्च सर्वसिद्धि प्रदायिनीम्।

सर्वेश्वरीं श्रीविजय लक्ष्मीं देवीं नमाम्यहम्।।               8

अष्टलक्ष्मी समाहार स्वरूपां तां हरिप्रियाम्।

मोक्षलक्ष्मीं महालक्ष्मीं सर्वलक्ष्मीं नमाम्यहम्।।   9

दारिद्र्य दुःखहरणं समृद्धिरपि सम्पदाम्।

सच्चिदानन्द पूर्णत्व मष्टलक्ष्मी स्तुतेर्भवेत्।।                 10

3)आदित्य हृदय स्तोत्रम्

नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुषे

जगत्प्रसूति स्थिति नाश हेतवे।

त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे

विरिंचि नारायण शंकरात्मने।।

ततो युद्ध परिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्।।                 1

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टु मभ्यागतो रणम्।

उपागम्याब्रवीद्राम मगस्त्यो भगवानृषिः।।                2

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।

येन सर्वा नरीन्वत्स समरे विजयिष्यसि।।          3

आदित्य हृदयं पुण्यं सर्वशत्रु विनाशनम्।

जयावहं जपे न्नित्य मक्षय्यं परमं शिवम्।।         4

सर्वमंगळ मांगल्यं सर्वपाप प्रणाशनम्।

चिन्ता शोक प्रशमन मायु र्वर्धन मुत्तमम्।।                5

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर नमस्कृतम्।

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।         6

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।

एष देवासुर गणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः।।  7

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव स्कन्दः प्रजापतिः।

महेन्द्रो धनदः कालो यम स्सोमो ह्यपां पतिः।।   8

पितरो वसव स्साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।

वायु र्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः।।               9

आदित्य स्सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।

सुवर्ण सदृशो भानु र्हिरण्यरेता दिवाकरः।।                10

हरिदश्व स्सहस्रार्चि स्सप्तसप्ति र्मरीचिमान्।

तिमिरोन्मथन श्शंभु स्त्वष्टा मार्तांड अंशुमान्।।  11

हिरण्यगर्भ श्शिशिर स्तपनो भास्करो रविः।

अग्नि गर्भोदितेः पुत्र श्शंख श्शिशिर नाशनः।। 12    

         व्योमनाथ स्तमोभेदी ऋग्यजुस्साम पारगः।

घनवृष्टि रपांमित्रो विंध्यवीथी प्लवंगमः।।            13

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगल स्सर्वतापनः।

कवि र्विश्वो महातेजा रक्त स्सर्वभवोद्भवः।।                14

नक्षत्र ग्रह ताराणा मधिपो विश्वभावनः।

तेजसा मपि तेजस्वी द्वादशात्म न्नमोस्तुते।।      15

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः।।          16

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।

नमो नम स्सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः।।    17

नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।

नमः पद्म प्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः।।               18

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः।।            19

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः।।          20

तप्त चामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे।

नमस्तमोभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।                21

नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः।।          22

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।

एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।       23

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः।।               24

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।

कीर्तयन् पुरुष कश्चिन्नावसीदति राघव।।           25

पूजयस्वैन मेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।

एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि।।         26

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि।

एव मुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम्।।  27

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोभव त्तदा।

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।।                28

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्ष मवाप्तवान्।

त्रिराचम्य शुचि र्भूत्वा धनु रादाय वीर्यवान्।।              29

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत्।

सर्व यत्नेन महता वधे तस्य धृतोभवत्।।                 30

अथ रवि रवद न्निरीक्ष्य रामं

मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।

         निशिचर पति सङ्क्षयं विदित्वा

सुरगण मध्यगतो वच स्त्वरेति।।                   31

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे युद्धकाण्डे आदित्य हृदय स्तोत्रं संपूर्णम्।

ध्येयस्सदा सवितृ मण्डल मध्यवर्ती

नारायण स्सरसिजासन सन्निविष्टः।

केयूरवान् मकर कुण्डलवान् किरीटी

हारी हिरण्मय वपु र्धृत शंख चक्रः।।

मित्र रवि सूर्य भानु खग पूष हिरण्यगर्भ

मरीच्यादित्य सवित्रर्क भास्करेभ्यो नमः।।

4)श्री राम प्रार्थनम्

         आपदा मपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयोभूयो नमाम्यहम्                  1

         आर्तानामार्तिहन्तारं भीतानां भीतिनाशनम्।

द्विषतां कालदण्डं तं रामचन्द्रं नमाम्यहम्।।               2

         नमः कोदण्डहस्ताय सन्धीकृत शराय च।

खण्डिताखिलदैत्याय रामायाप न्निवारिणे।।       3      

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।

रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।         4

         अग्रतः पृष्ठतश्चैव पार्श्वतश्च महाबलौ।              

आकर्णपूर्णधन्वानौ रक्षेतां रामलक्ष्मणौ।।          5      

सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।

गच्छन् ममाग्रतो नित्यं रामः पातु सलक्ष्मणः।।  6      

         अच्युतानन्त गोविन्द नामोच्चारण भेषजात्।

नश्यन्ति सकला रोगा स्सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।  7

सत्यं सत्यं पुन स्सत्य मुद्धृत्य भुज मुच्यते।

वेदाच्छास्त्रं परं नास्ति न दैवं केशवात्परम्।                 8

         शरीरे जर्जरीभूते व्याधिग्रस्ते कळेवरे।

औषधं जाह्नवी तोयं वैद्यो नारायणो हरिः।।               9

         नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मण हिताय च। 

जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः।।               10

         आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः।

इद मेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणो हरिः।।                 11

नमः कमलनाभाय नमस्ते जलशायिने।

नमस्ते केशवानन्त वासुदेव नमोस्तुते।।           12

आकाशा त्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्।

सर्वदेव नमस्कारः केशवं प्रतिगच्छति।।                    13

         सर्ववेदेषु यत्पुण्यं सर्वतीर्थेषु यत्फलम्।

तत्फलं समवाप्नोति स्तुत्वा देवं जनार्दनम्।।               14

         अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।

यस्स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर श्शुचिः।।        15

5)महालक्ष्म्यष्टकम्

इन्द्र उवाच

नमस्ते स्तु महामाये श्री पीठे सुरपूजिते।

शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मि नमोस्तुते।।    1

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुर भयंकरि।

सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते।।                     2

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरि।

सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते।।           3

         सिद्धिबुद्धि प्रदे देवि भुक्तिमुक्ति प्रदायिनि।

मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते।           4

  आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि।

योगजे योग संभूते महालक्ष्मि नमोस्तुते।।                 5

स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ते महोदरे।

महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते।।                    6

पद्मासन स्थिते देवि परब्रह्म स्वरूपिणि।

परमेशि जगन्मात - र्महालक्ष्मि नमोस्तुते।।               7

श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकार भूषिते।

जगत्स्थिते जगन्मात - र्महालक्ष्मि नमोस्तुते।।   ८

महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्रं यः पठे द्भक्तिमा न्नरः।।

 सर्वसिद्धि मवाप्नोति सौख्यं प्राप्नोति सर्वदा।।      ९

एककाले पठेन्नित्यं महापाप विनाशनम्।

द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्य समन्वितः।।              10

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनम्।

महालक्ष्मी र्भवे न्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।   11

6)रामायण संक्षेपः

तप स्स्वाध्याय निरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्।

नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकि र्मुनिपुंगवम्।।          1

  को न्वस्मिन् साम्प्रतं लोके गुणवान् कश्च वीर्यवान्।

धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः।।           2

चारित्रेण च को युक्त स्सर्वभूतेषु को हितः।

विद्वान् कः कस्समर्थश्च कश्चैक प्रियदर्शनः।।               3

आत्मवान् को जितक्रोधो द्युतिमान् कोनसूयकः।

कस्य बिभ्यति देवाश्च जात रोषस्य संयुगे।।                4

एत दिच्छाम्यहं श्रोतुं परं कौतूहलं हि मे।

महर्षे त्वं समर्थोसि ज्ञातु मेवं विधं नरम्।।                5

श्रुत्वा चैतत् त्रिलोकज्ञो वाल्मीके र्नारदो वचः।

श्रूयता मिति चामन्त्र्य प्रहृष्टो वाक्य मब्रवीत्।।    6

बहवो दुर्लभा श्चैव ये त्वया कीर्तिता गुणाः।

मुने वक्ष्याम्यहं बुद्ध्वा तैर्युक्त श्श्रूयतां नरः।।                 7

इक्ष्वाकु वंश प्रभवो रामो नाम जनै श्श्रुतः।

नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान् धृतिमान् वशी।। 8

बुद्धिमान् नीतिमान् वाग्मी श्रीमा ञ्छत्रुनिबर्हणः।

विपुलांसो महाबाहुः कंबु ग्रीवो महाहनुः।।                 9

महोरस्को महेष्वासो गूढ जत्रु ररिन्दमः।

आजानु बाहु स्सुशिरा स्सुललाट स्सुविक्रमः      ।।     10

सम स्सम विभक्तांग- स्स्निग्ध वर्णः प्रतापवान्।

पीन वक्षा विशालाक्षो लक्ष्मीवान् शुभ लक्षणः।।  11

धर्मज्ञ स्सत्यसन्धश्च प्रजानां च हिते रतः।

यशस्वी ज्ञानसंपन्न श्शुचि र्वश्य स्समाधिमान्।। 12

प्रजापति सम श्श्रीमान् धाता रिपुनिषूदनः।

रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परि रक्षिता।।                 13

रक्षिता स्वस्य धर्मस्य स्वजनस्य च रक्षिता।

वेद वेदाङ्ग तत्त्वज्ञो धनुर्वेदे च निष्ठितः।।            14

सर्व शास्त्रार्थ तत्त्वज्ञ - स्स्मृतिमान् प्रतिभानवान्।

सर्वलोक प्रिय स्साधु - रदीनात्मा विचक्षणः।।    15

सर्वदाभिगत  स्सद्भि - स्समुद्र इव सिन्धुभिः।

आर्य  स्सर्वसमश्चैव सदैव प्रिय दर्शनः।।           16

स च सर्व गुणोपेतः कौसल्यानन्द वर्धनः।

समुद्र इव गांभीर्ये  धैर्येण हिमवा निव।।           17

विष्णुना सदृशो वीर्ये सोमवत् प्रिय दर्शनः।

कालाग्नि सदृशः क्रोधे क्षमया पृथवी समः।।              18

धनदेन सम स्त्यागे सत्ये धर्म इवापरः।

तमेवं गुण संपन्नं रामं सत्य पराक्रमम्।।           19

ज्येष्ठं श्रेष्ठ गुणै र्युक्तं प्रियं दशरथ स्सुतम्।

प्रकृतीनां हितैर्युक्तं प्रकृति प्रिय काम्यया।।          20

यौव राज्येन संयोक्तु - मैच्छत् प्रीत्या महीपतिः।

तस्याभिषेक संभारान् दृष्ट्वा भार्याथ कैकयी।।    21

पूर्वं दत्तवरा देवी वर मेन मयाचत।

विवासनं च रामस्य भरतस्याभिषेचनम् ।।                 22

स सत्य वचनाच्चैव धर्म पाशेन संयतः।

विवासयामास सुतं रामं दशरथ प्रियम्।।           23

स जगाम वनं वीरः प्रतिज्ञा मनुपालयन्।

पितु र्वचन निर्देशात् कैकेय्याः प्रिय कारणात्।।   24

तं व्रजन्तं प्रियो भ्राता लक्ष्मणो नुजगाम ह।

स्नेहा द्विनय संपन्न स्सुमित्रानन्द वर्धनः।।          25

भ्रातरं दयितो भ्रातु स्सौभ्रात्र मनु दर्शयन्।

रामस्य दयिता भार्या नित्यं प्राण समाहिता।।              26

जनकस्य कुले जाता देव मायेव निर्मिता।

सर्व लक्षण संपन्ना नारीणा मुत्तमा वधूः।।          27

सीताप्यनुगता रामं शशिनं रोहिणी यथा।

 पौरै रनुगतो दूरं पित्रा दशरथेन च।।                       28

शृंगिबेर पुरे सूतं गंगा कूले व्यसर्जयत्।

गुह मासाद्य धर्मात्मा निषादाधिपतिं प्रियम्।।              29

गुहेन सहितो  रामो लक्ष्मणेन च सीतया।

ते वनेन वनं गत्वा नदी स्तीर्त्वा बहूदकाः।।                30

चित्रकूट मनुप्राप्य भरद्वाजस्य शासनात्।

रम्य मावसथं कृत्वा रममाणा वने त्रयः।।          31

देव गन्धर्व संकाशा स्तत्र ते न्यवसन् सुखम्।

चित्रकूटं गते रामे पुत्र शोकातुर  स्तथा।।         32

राजा दशरथ स्स्वर्गं जगाम विलपन् सुतम्।

गते तु तस्मिन् भरतो वसिष्ठ प्रमुखै र्द्विजैः।।               33

नियुज्यमानो राज्याय नैच्छ द्राज्यं महाबलः।

स जगाम वनं वीरो राम पाद प्रसादतः।।          34

गत्वा तु स महात्मानं रामं सत्य पराक्रमम्।।

अयाचद्भ्रातरं राम - मार्यभाव पुरस्कृतः।।                  35

त्वमेव राजा धर्मज्ञ इति रामं वचोब्रवीत्।

रामोपि परमोदार स्सुमुख स्सुमहायशाः।।               36

न चैच्छत् पितु रादेशा - द्राज्यं रामो महाबलः।

पादुके चास्य राज्याय न्यासं दत्त्वा पुनः पुनः।।   37

निवर्तयामास ततो भरतं भरताग्रजः।

स काम मनवाप्यैव राम पादा वुपस्पृशन्।।                 38

नन्दि ग्रामे करोत् राज्यं रामागमन कांक्षया।

गते तु भरते श्रीमान् सत्य सन्धो जितेन्द्रियः।।   39

रामस्तु पुन रालक्ष्य नगरस्य जनस्य च।

तत्रागमन मेकाग्रो दण्डकान् प्रविवेश ह।।                 40

प्रविश्य तु महारण्यं रामो राजीवलोचनः।

विराधं राक्षसं हत्वा शरभंगं ददर्श ह।।                      41

   सुतीक्ष्णं चाप्यगस्त्यंच - अगस्त्य भ्रातरं तथा।

अगस्त्य वचनाच्चैव जग्राहैन्द्रं शरासनम्।।                 42

खड्गं च परम प्रीत - स्तूणी चाक्षय सायकौ।

वसत स्तस्य रामस्य वने वनचरै स्सह।।           43

ऋषयो भ्यागमन् सर्वे वधायासुर रक्षसाम्।

स तेषां प्रति शुश्राव राक्षसानां तथा वने।।                 44

प्रतिज्ञातश्च च रामेण वध स्संयति रक्षसाम्।

ऋषीणा मग्नि कल्पानां दंडकारण्य वासिनाम्।।  45

तेन तत्रैव वसता जन स्थान निवासिनी।

विरूपिता शूर्पणखा राक्षसी काम रूपिणी।।               46

तत श्शूर्पणखा वाक्या - दुद्युक्तान् सर्व राक्षसान्।

खरं त्रिशिरसंचैव दूषणं चैव राक्षसम्।।            47

निजघान रणे राम स्तेषां चैव पदानुगान्।

वने तस्मि न्निवसता जनस्थान निवासिनाम्।।     48

रक्षसा न्निहता - न्यासन् सहस्राणि चतुर्दश।

ततो ज्ञाति वधं श्रुत्वा रावणः क्रोध मूर्छितः।।             49

सहायं वरयामास मारीचं नाम राक्षसम्।

वार्यमाण स्सुबहुशो मारीचेन स रावणः।।                 50

न विरोधो बलवता क्षमो रावण तेन ते।

अनादृत्य तु तद्वाक्यं रावणः काल चोदितः।।              51

जगाम सह मारीच स्तस्याश्रम पदं तदा।

तेन मायाविना दूर मपवाह्य नृपात्मजौ।।           52

जहार भार्यां रामस्य गृध्रं हत्वा जटायुषम्।।

गृध्रं च निहतं दृष्ट्वा हृतां श्रुत्वा च मैथिलीम्।।     53

राघव श्शोक सन्तप्तो विललापाकुलेन्द्रियः।

तत स्तेनैव शोकेन गृध्रं दग्ध्वा जटायुषम्।।       54

मार्गमाणो वने सीतां राक्षसं सन्ददर्श ह।

कबन्धं नाम रूपेण विकृतं घोर दर्शनम्।।          55

त न्निहत्य महाबाहु - र्ददाह स्वर्गतश्च सः।

स चास्य कथयामास शबरीं धर्म चारिणीम्।।             56

श्रमणीं धर्म निपुणा - मभिगच्छेति राघवम्।

सोभ्यगच्छ न्महातेजा -  श्शबरीं शत्रु सूदनः।।        57

शबर्या पूजित स्सम्य-ग्रामो दशरथात्मजः।

पंपा तीरे हनुमता संगतो वानरेण ह।।                       58

हनुम द्वचना च्चैव सुग्रीवेण समागतः।

सुग्रीवाय च तत् सर्वं शंसद्रामो महाबलः।।                59

आदित स्तद्यथा वृत्तं सीतायाश्च विशेषतः।

सुग्रीव श्चापि तत्सर्वं श्रुत्वा रामस्य वानरः।।               60

चकार सख्यं रामेण प्रीत श्चैवाग्नि साक्षिकम्।

ततो वानर राजेन वैरानुकथनं प्रति।।                        61

रामायावेदितं सर्वं प्रणया द्दुःखितेन च।

प्रतिज्ञातं च रामेण तदा वालिवधं प्रति।।          62

वालिनश्च बलं तत्र कथयामास वानरः।

सुग्रीव श्शंकित श्चासी - न्नित्यं वीर्येण राघवे।।   63

राघव प्रत्ययार्थन्तु दुंदुभेः काय मुत्तमम्।

दर्शयामास सुग्रीवो महापर्वत सन्निभम्।।          64

उत्स्मयित्वा महाबाहुः प्रेक्ष्य चास्थि महाबलः।

पादांगुष्ठेन चिक्षेप स्संपूर्णं  दश योजनम्।।                 65

बिभेद च पुन स्सालान् सप्तैकेन महेषुणा।

गिरिं रसातलं चैव जनयन् प्रत्ययं तथा।।          66

ततः प्रीतमना स्तेन विश्वस्त स्स महाकपिः।

किष्किन्धां राम सहितो जगाम च गुहां तदा।।    67

ततो गर्ज द्धरिवर स्सुग्रीवो हेम पिंगलः।

तेन नादेन महता निर्जगाम हरीश्वरः।।                      68

अनुमान्य तदा तारां सुग्रीवेण समागतः।

निजघान च तत्रैनं शरेणैकेन राघवः।।                      69

तत स्सुग्रीव वचनात् हत्वा वालिन माहवे।

सुग्रीवमेव तद्राज्ये राघवः प्रत्यपादयत् ।।         70

स च सर्वान् समानीय वानरान् वानरर्षभः।

दिशः प्रस्थापयामास दिदृक्षु र्जनकात्मजाम्।।     71

ततो गृध्रस्य वचनात् संपाते र्हनुमान् बली।

शत योजन विस्तीर्णं पुप्लुवे लवणार्णवम्।।                 72

तत्र लंकां समासाद्य पुरीं रावण पालिताम्।

ददर्श सीतां ध्यायन्ती  मशोक वनिकां गताम्।।  73

निवेदयित्वाभिज्ञानं प्रवृत्तिं च निवेद्य च।

समाश्वास्य च वैदेहीं मर्दयामास तोरणम्।।                74

पंच सेनाग्रगान् हत्वा सप्त मन्त्रि सुतानपि।

शूरमक्षं च निष्पिष्य ग्रहणं समुपागमत्।।          75

अस्त्रेणोन्मुक्त मात्मानं ज्ञात्वा पैतामहा द्वरात्।

मर्षयन् राक्षसान् वीरो यन्त्रिण स्तान् यदृच्छया।। 76

    ततो दग्ध्वा पुरीं लंका - मृते सीतां च मैथिलीम्।

रामाय प्रिय माख्यातुं पुन रायान्महाकपिः।।    77

सोभिगम्य महात्मानं कृत्वा रामं प्रदक्षिणम्।

न्यवेदय दमेयात्मा दृष्टा सीतेति तत्त्वतः।।                  78

तत स्सुग्रीव सहितो गत्वा तीरं महोदधेः।

समुद्रं क्षोभयामास शरै रादित्य सन्निभैः।।                 79

दर्शयामास चात्मानं समुद्र स्सरितां पतिः।

समुद्र वचनाच्चैव नलं सेतु मकारयत्।।             80

तेन गत्वा पुरीं लंकां हत्वा रावण माहवे।

राम स्सीता मनुप्राप्य परां व्रीडा मुपागमत्।।              81

तामुवाच ततो रामः परुषं जन संसदि।

अमृष्यमाणा सा सीता विवेश ज्वलनं सती।।              82

   ततोग्नि वचनात् सीतां ज्ञात्वा विगत कल्मषाम्।

कर्मणा तेन महता त्रैलोक्यं स चराचरम्।।                 83

स देवर्षि गणं तुष्टं राघवस्य महात्मनः।

बभौ राम स्संप्रहृष्टः पूजित स्सर्व दैवतैः।।          84

अभिषिच्य च लंकायां राक्षसेन्द्रं विभीषणम्।

कृतकृत्य स्तदा रामो विज्वरः प्रमुमोद ह।।                85

देवताभ्यो वरान्प्राप्य समुत्थाप्य च वानरान्।

अयोध्यां प्रस्थितो रामः पुष्पकेण सुहृद्वृतः।।               86

भरद्वाजाश्रमं गत्वा राम स्सत्य पराक्रमः।

भरतस्यान्तिकं रामो हनुमन्तं व्यसर्जयत्।।                87

पुन राख्यायिकां जल्पन् सुग्रीव सहित स्तदा।

पुष्पकं तत् समारुह्य नन्दिग्रामं ययौ तदा।।                88

नन्दिग्रामे जटां हित्वा भ्रातृभि स्सहितोनघः।

राम स्सीता मनु प्राप्य राज्यं पुन रवाप्तवान्।।     89

प्रहृष्टो मुदितो लोक स्तुष्ट पुष्ट स्सुधार्मिकः।

निरामयो ह्यरोगश्च दुर्भिक्ष भय वर्जितः।।           90

   न पुत्र मरणं किंचि - द्द्रक्ष्यन्ति पुरुषाः क्वचित्।

नार्यश्चाविधवा नित्यं भविष्यन्ति पति व्रताः।।             91

 न चाग्निजं भयं किंचि - न्नाप्सु मज्जन्ति जन्तवः।

न वातजं भयं किंचि न्नापि ज्वरकृत न्तथा।।       92

न चापि क्षुद्भयं तत्र न तस्कर भय न्तथा।

नगराणि च राष्ट्राणि धन धान्य युतानि च।।                93

नित्यं प्रमुदिता स्सर्वे यथा कृत युगे तथा।

अश्वमेध शतैरिष्ट्वा तथा बहु सुवर्णकैः।।            94

गवां कोट्ययुतं दत्त्वा विद्वद्भ्यो विधि पूर्वकम्।

असंख्येयं धनं दत्त्वा ब्राह्मणेभ्यो महायशाः।।             95

राज वंशा ञ्छत गुणान् स्थापयिष्यति राघवः।

चातुर्वर्ण्यं च लोकेस्मिन् स्वेस्वे धर्मे नियोक्ष्यति।।       96

दश वर्ष सहस्राणि दश वर्ष शतानि च।

रामो राज्यमुपासित्वा ब्रह्म लोकं प्रयास्यति।।              97

इदं पवित्रं पापघ्नं पुण्यं वेदैश्च संमितम्।

यः पठे द्राम चरितं सर्व पापैः प्रमुच्यते।।           98

एत दाख्यान मायुष्यं पठन् रामायण न्नरः।

स पुत्र पौत्र स्स गणः प्रेत्य स्वर्गे महीयते।।                99

पठन् द्विजो वागृषभत्व मीयात्

स्यात् क्षत्रियो भूमि पतित्वमीयात्।

वणिग्जनः पण्य फलत्वमीया –

ज्जनश्च शूद्रोपि महत्त्व मीयात्।।          100

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे आदि काव्ये संक्षेपो नाम प्रथम स्सर्गः।।

रामो राजमणि स्सदा विजयते रामं रमेशं भजे।

         रामेणाभिहता निशाचर चमू रामाय तस्मै नमः।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहं

         रामे चित्तलय स्सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर।।

7)प्रातःकाले पठनीयाः

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।

करमूले तु गौरी स्यात् प्रभाते करदर्शनम्।                  1

समुद्रवसने देवि पर्वत स्तनमंडले।

विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।                2

         अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा।

पंच कन्या स्मरे न्नित्यं महापातकनाशनम्।।      3

पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः।

पुण्यश्लोका च वैदेही पुण्यश्लोको जनार्दनः।।               4

         कर्कोटकस्य नागस्य दमयन्त्या नलस्य च।

ऋतुपर्णस्य राजर्षेः कीर्तनं कलिनाशनम्।।                 5

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।

कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः।।                      6

8)सुप्रभात श्लोकाः

ब्रह्मा मुरारि स्त्रिपुरान्तकश्च  भानुश्शशी भूमिसुतो बुधश्च।

गुरुश्च शुक्र श्शनि राहुकेतवः कुर्वंतु सर्वे मम सुप्रभातम्। 7    

   भृगु र्वसिष्ठः क्रतु रंगिराश्च मनुः पुलस्त्यः पुलहश्च गौतमः।

रैभ्यो मरीचिश्च्यवनोथ दक्षः कुर्वंतु सर्वे मम सुप्रभातम्। 8

सनत्कुमारश्च सनन्दनश्च सनातनो प्यासुरि संहलौ च।

सप्तस्वरा स्सप्तरसातलानि कुर्वंतु सर्वे मम सुप्रभातम्।।  9

सप्तार्णवा स्सप्तकुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त।

भूरादिलोका भुवनानि सप्त कुर्वंतु सर्वे मम सुप्रभातम्।।  10

    पृथ्वी सगंधा सरसास्तदापः स्पर्शश्च वायुर्ज्वलितं च तेजः।

नभ.स्सशब्दं महता सहैव कुर्वंतु सर्वे मम सुप्रभातम्।।  11

गुरु र्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः।

 गुरु स्साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।                      12

9)स्नानकाले पठनीयाः

अतिक्रूर महाकाय कल्पांत दहनोपम।

भैरवाय नमस्तुभ्य - मनुज्ञां दातु मर्हसि।।          13

गंगा गंगेति यो ब्रूया - द्योजनानां शतैरपि।

मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति।।      15

गंगे च यमुने कृष्णे गोदावरि सरस्वति।

नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु।।   16

10)भोजन समये पठनीयाः

माता च पार्वतीदेवी पिता देवो महेश्वरः।

बान्धवा श्शिव भक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्।।             17

भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।। 18

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राणवल्लभे।               

ज्ञानवैराग्य सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति।।        19

         अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देह माश्रितः।       

प्राणापान समायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।                  20

ब्रह्मार्पणं ब्रह्महवि र्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।

ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्म कर्म समाधिना।।         21

11)गृहान्निर्गमन समये पठनीयाः

         वनमाली गदी शार्ङ्गी शङ्खी चक्री च नन्दकी।

श्रीमान्नारायणो विष्णु र्वासुदेवोभिरक्षतु।।                 22

         सुमुख श्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।

लम्बोदरश्च विकटो विघ्नराजो गणाधिपः।।           23

         धूम्रकेतु र्गणाध्यक्षः फालचन्द्रो गजाननः।

वक्रतुण्ड श्शूर्पकर्णो हेरम्ब स्स्कन्दपूर्वजः।।                  24

         षोडशैतानि नामानि यः पठे च्छृणुयादपि।

विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।               

         संग्रामे सर्वकार्येषु विघ्नस्तस्य न जायते।।  25

हनुमा नञ्जनासूनु र्वायुपुत्रो महाबलः।

रामेष्टः फल्गुनसखः पिङ्गाक्षोमित विक्रमः।।      26

उदधिक्रमणश्चैव सीताशोक विनाशकः।

लक्ष्मण प्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।   27

द्वादशैतानि नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः।

स्वापकाले पठेन्नित्यं यात्राकाले विशेषतः।

तस्य मृत्युभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।               28

         आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌।।                 29

12)निद्रा काले पठनीयाः

         अगस्ति र्माधवश्चैव मुचुकुन्दो महाबलः।

कपिलो मुनि रास्तीकः पंचैते सुखशायिनः।।               30

         केशवं माधवं विष्णुं शेषशायिन मच्युतम्।

हंसं नारायणं कृष्णं स्मरे द्दुस्स्वप्न शान्तये।।                 31

         ब्रह्माणं शंकरं विष्णुं यमं रामं दनुं बलिम्।

  सप्तैतान् यस्स्मरेन्नित्यं दुस्स्वप्न स्तस्य नश्यति।।       32


 

देवता प्रार्थन मन्त्राः

13)गणपति प्रार्थनम्

वागीशाद्या स्सुमनस स्सर्वार्थाना मुपक्रमे।

यं नत्वा कृतकृत्यास्स्यु स्तं नमामि गजाननम्।।  33

भवसञ्चित पापौघ विध्वंसन विचक्षणम्।

विघ्नान्धकार भास्वन्तं विघ्नराज महं भजे।।                34

         शुक्लांबरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।

प्रसन्नवदनं ध्याये त्सर्व विघ्नोपशान्तये।।           35

         अगजाननपद्मार्कं गजानन महर्निशम्।

अनेकदं तं भक्तना मेकदन्त मुपास्महे।।            36

  गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जंबू फलसार भक्षणम्।

 उमासुतं शोकविनाशकारणं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।37

 वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

अविघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।                      38

14)रोग पीडा नाशक स्कन्द स्तोत्रम्

 शक्तिहस्तं विरूपाक्षं शिखिवाहं षडाननम्।

दारुणं रिपु रोगघ्नं भावयेत् कुक्कुटध्वजम्।।                 39

युद्धेषु विबुधा स्सर्वे बाडबा श्चाध्वरेष्वपि।

गायन्ति यं कार्यसिद्ध्यै भजे षाण्मातुरं मुदा।।      40

मयूराधिरूढं महावाक्यगूढं मनोहारि देहं महच्चित्तगेहम्।

  महादेवदेवं महावेदभावं महादेवबालं भजे लोकपालम्।।       41

 अपस्मारकुष्ठक्षयार्शः प्रमेह- ज्वरोन्मादगुल्मादि रोगा महान्तः।

पिशाचाश्च सर्वे भवत्पत्रभूतिं विलोक्य प्रभो तारकारे द्रवंति।। 42

15)शिव स्तोत्रम्

महादेव महादेव महादेव दयानिधे।

भवानेव भवानेव भवानेव गतिर्मम।।                        43

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशोसि महेश्वर।

यादृशोसि महादेव तादृशाय नमो नमः।।                44

मृत्युञ्जयाय रुद्राय नीलकण्ठाय शम्भवे।

अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय ते नमः।।                    45

आत्मा त्वं गिरिजा मति स्सहचराः प्राणा श्शरीरं गृहम्

पूजा ते विषयोपभोग रचना निद्रा समाधि स्थितिः।

सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिण विधि स्स्तोत्राणि सर्वा गिरः

यद्यत् कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्।।     46

करचरणकृतं वा कायजं कर्णजं वा

श्रवण नयनजं वा मानसं वापराधम्।

         विहित मविहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व     

जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शंभो।।                      47

16)शिव पंचाक्षरी स्तोत्रम्

         ओंकार मंत्र संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः।

कामदं मोक्षदं तस्मै ओंकाराय नमोनमः।।                 48

         नमस्ते देवदेवेश नमस्ते परमेश्वर।

नमस्ते वृषभारूढ नकाराय नमोनमः।।                     49

महादेवं महात्मानं महापातक नाशनम्।

महापाप हरं वन्दे मकाराय नमो नमः।।           50

शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकानु ग्रहकारणम्।

शिवमेकं परं वन्दे शिकाराय नमो नमः।।          51

वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कण्ठभूषणम्।

वामे शक्तिधरं वन्दे वकाराय नमो नमः।।          52

         यत्र कुत्र स्थितं देवं सर्व व्यापिन मीश्वरम्।

यल्लिंगं पूजये न्नित्यं यकाराय नमो नमः।।         53

17)परमेश्वर पञ्चमुख ध्यानम्

संवर्ताग्नि तटित्प्रदीप्त कनक प्रस्पर्धि तेजोमयं

गंभीर ध्वनि सामवेदजनकं ताम्राधरं सुन्दरम्।

अर्धेन्दु द्युतिलोल पिङ्गळ जटाभार प्रबद्धोरगं

वन्दे सिद्ध सुरासुरेन्द्र नमितं पूर्वं मुखं शूलिनः।। 54

तत्पुरुषाय नमः। ओं नमो भगवते रुद्राय। पूर्वमुखाय नमः।

कालाभ्र भ्रमरांजनद्युति निभं व्यावृत्त पिङ्गेक्षणं

कर्णोद्भासित भोगि मस्तक मणि प्रोद्गीर्ण दंष्ट्राङ्कुरम्।

सर्प प्रोत कपाल शुक्ति शकल व्याकीर्ण सच्छेखरं

वन्दे दक्षिण मीश्वरस्य कुटिल भ्रूभङ्ग रौद्रं मुखम्।।        55

  अघोराय नमः। ओं नमो भगवते रुद्राय। दक्षिणमुखाय नमः।

प्रालेयाचल मिन्दु कुन्दधवळं गोक्षीर फेनप्रभं

भस्मा भ्यक्त मनङ्ग देह दहन ज्वालावळी लोचनम्।

ब्रह्मेन्द्रादि मरुद्गणै स्स्तुतिपदै रभ्यर्चितं योगिभिः

वन्देहं सकलं कळङ्करहितं स्थाणो र्मुखं पश्चिमम्।।56

सद्योजाताय नमः। ओं नमो भगवते रुद्राय।पश्चिममुखाय नमः।      

         गौरं कुङ्कुमपङ्किलं सुतिलकं व्यापाण्डु गण्डस्थलं

भ्रूविक्षेप कटाक्ष वीक्षण लसत्संसक्त कर्णोत्पलम्।

स्निग्धं बिंब फलाधर प्रहसितं नीलालका लङ्कृतं

वन्दे पूर्ण शशाङ्क मण्डल निभं वक्त्रं हरस्योत्तरम्।।57

  वामदेवाय नमः। ओं नमो भगवते रुद्राय। उत्तरमुखाय नमः।

व्यक्ताव्यक्त गुणेतरं सुविमलं षट्त्रिंश तत्त्वात्मकं

तस्मादुत्तम तत्त्व मक्षर मिति ध्येयं सदा योगिभिः।

  ओङ्कारादि समस्त मन्त्रजनकं सूक्ष्मादि सूक्ष्मं परं

शान्तं पञ्चम मीश्वरस्य वदनं खव्यापि तेजोमयम्।। 58

 ईशानाय नमः। ओं नमो भगवते रुद्राय। ऊर्ध्वमुखाय नमः।

18)दिग्रक्षणम्

         पूर्वे पशुपतिः पातु दक्षिणे पातु शंकरः।

पश्चिमे पातु विश्वेशो नीलकण्ठ स्तथोत्तरे।।                59

ईशान्यां पातु मां शर्वो ह्याग्नेय्यां पार्वतीपतिः।

नैर्ऋत्यां पातु मे रुद्रो वायव्यां नीललोहितः।।             60

ऊर्ध्वे त्रिलोचनः पातु ह्यधरायां महेश्वरः।

एताभ्यो दशदिग्भ्यस्तु सर्वतः पातु शंकरः।।               61

ओं नम श्शिवाय। ओं नम श्शिवाय।

19)विष्णु स्तोत्रम्

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाकारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम्।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिहृद्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।                 62

मेघश्यामं पीतकौशेयवासं

श्रीवत्सांकं कौस्तुभोद्भासितांगम्।

         पुण्योपेतं पुंडरीकायताक्षं

                 विष्णुं वन्दे सर्वलोकैक नाथम्।।    63

         सशंखचक्रं सकिरीटकुंडलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।

सहार वक्षस्स्थल शोभि कौस्तुभं

नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम्।।                           62

करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्।

  वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुंदं मनसा स्मरामि।। 63

         वसुदेवसुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम्।

देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।                     64

षट्पदी स्तोत्रम्

अविनयमपनय विष्‍णो दमय मन.श्शमय विषयमृगतृष्‍णाम् ।

भूतदयां विस्तारय तारय संसारसागरतः ।।       1

दिव्यधुनीमकरन्दे परिमलपरिभोगसच्चिदानन्दे

श्रीपतिपदारविन्दे भवभयखेदच्छिदे वन्दे ।।       2

सत्यपि भेदापगमे नाथ तवाहं न मामकीन.स्त्वम्

सामुद्रो हि तरंगः क्वचन समुद्रो न तारंगः ।।     3

उद्धृतनग नगभि.दनुज दनुजकुलामित्र मित्रशशिदृष्‍टे

दृष्‍टे भवति प्रभवति न भवति किं भवतिरस्कारः? 4

मत्स्यादिभि.रवतारै.रवतारवतावता सदा वसुधाम्।

परमेश्‍वर परिपाल्यो भवता भवतापभीतोऽहम्।।         5

दामोदर गुणमन्दिर सुन्दरवदनारविन्द गोविन्द

भवजलधिमथनमन्दर परमं दरमपनय त्वं मे ।।  6

नारायण करुणामय शरणं करवाणि तावकौ चरणौ।

इति षट्पदी मदीये वदनसरोजे सदा वसतु ।।      

इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं षट्पदीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।

20)देवीस्तोत्रम्

सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।   

विद्यारंभं करिष्यामि सिद्धि र्भवतु मे सदा।।         65

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद   प्रसीद मात र्जगतोखिलस्य।

  प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।   66

      आधारभूता जगत स्त्वमेका महीस्वरूपेण यत स्स्थितासि।

अपां स्वरूपस्थितया त्वयैत- दाप्यायते कृत्स्नमलंघ्यवीर्ये।।      67

     त्वं वैष्णवीशक्ति रनंतवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया।

संमोहितं देवि समस्त मेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः।।      68

     विद्या  स्समस्ता स्तव देवि ! भेदा-स्स्त्रिय स्समस्ता स्सकला जगत्सु।

त्वयैकया पूरित मंबयैतत्    का ते स्तुति स्तव्य परा परोक्तिः?       69

सर्वभूता यदा देवि, भुक्तिमुक्ति प्रदायिनि।

त्वं स्तुता स्तुतये का वा, भवंति परमोक्तयः।।    70

सर्वस्य बुद्धिरूपेण, जनस्य हृदि संस्थिते।

स्वर्गापवर्गदे देवि ! नारायणि ! नमो(अ)स्तुते     71

         कळा काष्ठादि रूपेण, परिणाम प्रदायिनि।

विश्वस्योपरतौ शक्ते, नारायणि ! नमो(अ)स्तुते।। 72

         सर्वमंगळ मांगल्ये! शिवे! सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये! त्र्यंबके! गौरि! नारायणि! नमो(अ)स्तुते।।        73

सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्ति भूते सनातनि।

गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमो(अ)स्तुते।।               74

         शरणागत दीनार्त, परित्राण परायणे।

सर्वस्यार्तिहरे ! देवि ! नारायणि ! नमोस्तुते        75    

हंसयुक्त विमानस्थे; ब्रह्माणी रूपधारिणि।

कौशांभः क्षरिके ! देवि ! नारायणि! नमोस्तुते।।   76             

त्रिशूल चंद्राहिधरे ! महावृषभ वाहिनि।

माहेश्वरी स्वरूपेण,  नारायणि ! नमोस्तुते।।               77

मयूर कुक्कुट वृते!  महाशक्तिधरे(अ)नघे।

कौमारी रूप संस्थाने ! नारायणि ! नमोस्तुते।।   78

शंख चक्र गदा शार्ङ्ग - गृहीत परमायुधे।

प्रसीद वैष्णवीरूपे ! नारायणि ! नमो(अ)स्तुते।। 79    

         गृहीतोग्र महाचक्रे ! दंष्ट्रोद्धृत वसुंधरे।

वाराहरूपिणि ! शिवे ! नारायणि ! नमो(अ)स्तुते।।       80        

नृसिंहरूपेणोग्रेण, हंतुं दैत्यान् कृतोद्यमे।

त्रैलोक्य त्राण सहिते ! नारायणि ! नमो(अ)स्तुते।।      81

किरीटिनि ! महावज्रे ! सहस्र नयनोज्ज्वले।

वृत्र प्राणहरे ! चैंद्रि ! नारायणि ! नमो(अ)स्तुते।।        82    

         शिवदूती स्वरूपेण, हतदैत्य महाबले।     

घोररूपे ! महारावे ! नारायणि ! नमो(अ)स्तुते।।        83

दंष्ट्रा कराळवदने ! शिरोमाला विभूषणे।

चामुंडे! मुंडमथने! नारायणि ! नमो(अ)स्तुते।।  84

लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये श्रद्धे पुष्टि स्वधे ध्रुवे।

महारात्रि महामाये  नारायणि नमो(अ)स्तुते।।            85

मेधे सरस्वति वरे भूति बाभ्रवि तामसि।

नियते त्वं प्रसीदेशे नारायणि नमो(अ)स्तुते।।                86

         सर्वस्वरूपे ! सर्वेशे !  सर्वशक्ति समन्विते।

भयेभ्य स्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तुते।।                 87

         एतत्ते वदनं सौम्यं, लोचनत्रय भूषितम्।

पातु न स्सर्वभूतेभ्यः  कात्यायनि नमोस्तुते।।     88

         ज्वाला कराळ मत्युग्र, मशेषासुर सूदनम्।

त्रिशूलं पातु नो भीते र्भद्रकाळि नमोस्तुते।।                89

हिनस्ति दैत्य तेजांसि, स्वनेनापूर्य या जगत्।

सा घंटा पातु नो देवि ! पापेभ्यो न स्सुतानिव।।  90

         असुरासृ ग्वसापंक, चर्चितस्ते करोज्ज्वलः।   

शुभाय खड्गो भवतु, चंडिके त्वां नता वयम्।।       91

रोगा नशेषा नपहंसि तुष्टा     रुष्टातु कामान् त्सकला नभीष्टान्।

त्वा माश्रितानां न विप न्नराणां    त्वा माश्रिता ह्याश्रयतां प्रयांति।।           92

चतुर्भुजे चंद्रकळावतंसे कुचोन्नते कुंकुम रागशोणे।

पुंड्रेक्षु पाशांकुश पुष्पबाण-  हस्ते नमस्ते जगदेकमातः।।

21)हनुमत् स्तोत्रम्

 दूरीकृत सीतार्तिः प्रकटी कृत राम वैभवस्फूर्तिः।

   दारित दशमुखकीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः।। 94

 यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं तत्र तत्र कृत मस्तकाञ्जलिम्।

   बाष्पवारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्।।95

मनोजवं मारुततुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।

   वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शिरसा नमामि।।       96

बुद्धिर्बलं यशोधैर्यं निर्भयत्व  मरोगता।

अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनूमत्स्मरणाद्भवेत्।।              97

22)नवग्रह स्तोत्रम्

नमस्सूर्याय चन्द्राय मङ्लाय बुधाय च।

गुरुशुक्रशनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः।।

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।

तमोघ्नं सर्वपापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम्।।          98

         दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम्।

नमामि शशिनं सोमं शंभो र्मकुट भूषणम्।।                   99

         धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम्।

कुमारं शक्तिहस्तञ्च मंगळं प्रणमाम्यहम्।।          100

         प्रियंगु कलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।

सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्।।       101

         देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसन्निभम्।

बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।                   102

         हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्‌।

सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्।।            103  

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।

छायामार्तांडसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।           104

         अर्धकायं महावीरं चन्द्रादित्य विमर्दनम्।

सिंहिकागर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।।           105  

पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकम्।

रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्।।                 105

23)हयग्रीव स्तोत्रम्

ज्ञानानन्दमयं देवं निर्मलस्फटिकाकृतिम्।

आधारं सर्वविद्यानां हयग्रीव मुपास्महे।।           106

24)दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम्

          ओं नमः प्रणवार्थाय शुद्धज्ञानैकमूर्तये।

         निर्मलाय प्रशान्ताय दक्षिणामूर्तये नमः।।         107

               वटविटपिसमीपे भूमिभागे निषण्णं

          सकल मुनिजनानां ज्ञानदातार मारात्।

               त्रिभुवन गुरुमीशं दक्षिणामूर्तिदेवं

जनन मरणदुःखच्छेद.दक्षं नमामि।।                108

विश्वं दर्पणदृश्यमाननगरीतुल्यं निजान्तर्गतं

पश्यन्नात्मनि मायया बहिरिवोद्भूतं यथा निद्रया ।

यस्साक्षात्कुरुते प्रबोधसमये स्वात्मानमेवाद्वयं

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥१॥

बीजस्यान्तरिवाङ्कुरो जगदिदं प्राङ्निर्विकल्पं पुनः

         माया कल्पित देशकाल कलना वैचित्र्य चित्रीकृतम्‌ ।

मायावीव विजृम्भयत्यपि महायोगीव यस्स्वेच्छया

         तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥२॥

यस्यैव स्फुरणं सदात्मकमसत्कल्पार्थकं भासते

         साक्षात्तत्त्वमसीति वेदवचसा यो बोधयत्याश्रितान्‌ ।

यत्साक्षात्करणाद्भवेन्न पुनरावृत्ति.र्भवाम्भोनिधौ

         तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥३॥

नानाच्छिद्र.घटोदर.स्थित.महादीपप्रभा.भास्वरं

         ज्ञानं यस्य तु चक्षुरादि करणद्वारा बहि.स्स्पन्दते ।

जानामीति तमेव भान्त.मनुभात्येतत्समस्तं जगत्‌

         तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥४॥

देहं प्राणमपीन्द्रियाण्यपि चलां बुद्धिञ्च शून्यं विदुः

         स्त्री.बालान्ध.जडोपमा.स्त्वहमिति भ्रान्ता भृशं वादिनः ।

माया.शक्तिविलास.कल्पित.महाव्यामोह.संहारिणे

         तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥५॥

राहुग्रस्त.दिवाकरेन्दु.सदृशो.मायासमाच्छादनात्‌

         सन्मात्रः करणोपसंहरणतो योऽभूत्सुषुप्तः पुमान्‌।

प्रागस्वाप्समिति प्रबोधसमये यः प्रत्यभिज्ञायते

         तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥६॥

बाल्यादिष्वपि जाग्रदादिषु तथा सर्वा.स्ववस्थास्वपि

         व्यावृत्ता.स्वनुवर्तमान. मह.मित्यन्त.स्स्फुरन्तं सदा ।

स्वात्मानं प्रकटीकरोति भजतां यो मुद्रया भद्रया

         तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥७॥

विश्वं पश्यति कार्यकारणतया स्वस्वामि.संबन्धतः

         शिष्याचार्यतया तयैव पितृपुत्राद्यात्मना भेदतः ।

स्वप्ने जाग्रति वा य एष पुरुषो मायापरिभ्रामितः

         तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥८॥

भू.रम्भां.स्यनलोऽनिलोऽम्बर.महर्नाथो हिमांशुः पुमान्‌

         इत्याभाति चराचरात्मक.मिदं यस्यैव मूर्त्यष्टकम्‌ ।

नान्यत्किञ्चन विद्यते विमृशतां यस्मा.त्परस्मा.द्विभोः

         तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥९॥

सर्वात्मत्व.मिति स्फुटीकृतमिदं यस्मा.दमुष्मिन्‌ स्तवे

         तेनास्य श्रवणात्तदर्थमनना.द्ध्यानाच्च सङ्कीर्तनात्‌ ।

सर्वात्मत्व.महाविभूति.सहितं स्या.दीश्वरत्वं स्वतः

         सिद्ध्ये.त्तत्पुन.रष्टधा परिणतं चैश्वर्य.मव्याहतम्‌ ॥१०॥

25)सद्गुरु दत्तात्रेय स्तोत्रम्

बालार्क प्रभ मिन्द्रनील जटिलं भस्मांग रागोज्ज्वलं

         शान्तं नाद विलीन चित्तपवनं शार्दूल चर्मांबरम्।

ब्रह्मज्ञै स्सनकादिभिः परिवृतं सिद्धै स्समाराधितं

दत्तात्रेय मुपास्महे हृदि मुदा ध्येयं सदा योगिभिः।। 109

दत्तात्रेय स्वभाव प्रकटन पटिम प्रोज्ज्वलद् ज्ञानभासः

सर्वात्मत्वान्मदीयं जडधियमपि योनाविलां चर्करीति।

उत्सोत्पन्नाभवाचं समुदयतु गुरु र्मामकीनो महेज्यः

तद्ब्रह्मण्यं भजेहं गणपति यमिनं सच्चिदानंद दत्तम्।।

26)शंकराचार्य स्तोत्रम्

श्रुति स्मृति पुराणाना मालयं करुणालयम्।

नमामि भगवत्पाद शंकरं लोकशंकरम्।।          110

विदिताखिलशास्त्र.सुधाजलधे महितोपनिषत् कथितार्थनिधे ।

हृदये कलये विमलं चरणं भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ १॥

करुणावरुणालय पालय मां भवसागरदुःख.विदून.हृदम् ।

रचयाखिलदर्शन.तत्त्वविदं भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ २॥

भवता जनता सुहिता भविता निजबोधविचारण चारुमते ।

कलयेश्वरजीव.विवेकविदं भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ३॥

भव एव भवा.निति मे नितरां समजायत चेतसि कौतुकिता ।

मम वारय मोह.महाजलधिं भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ४॥

सुकृतेऽधिकृते बहुधा भवतो भविता समदर्शनलालसता ।

अतिदीन.मिमं परिपालय मां भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ५॥

जगती.मवितुं कलिताकृतयो विचरन्ति महामहस.श्छलतः ।

अहिमांशु.रिवात्र विभासि गुरो भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ६॥

गुरुपुंगव पुंगवकेतन ते समता.मयतां नहि कोऽपि सुधीः ।

शरणागतवत्सल तत्त्वनिधे भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ७॥

विदिता न मया विशदैककला न च किंचन काञ्चन.मस्ति गुरो ।

द्रुतमेव विधेहि कृपां सहजां भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ८॥

27)मङ्गळाचरणम्

यश्शिवो नाम रूपाभ्यां या देवी सर्वमङ्गळा।

तयो स्संस्मरणात्पुंसां सर्वतो जय मङ्गळम्।।      111

तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव।

    विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेंघ्रियुगं स्मरामि।। 112

         यत्र योगेश्वर कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।

तत्र श्रीर्विजयो भूति र्ध्रुवा नीति र्मति र्मम।।                113

         स्मृते सकल कळ्याण भाजनं यत्र जायते।

पुरुष स्त मजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम्।।       114

         सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषा ममङ्गळम्।

येषां हृदिस्थो भगवा न्मंगळायतनं हरिः।।                 115

         लाभ स्तेषां जय स्तेषां कुत स्तेषां पराभवः।

येषा मिन्दीवर श्यामो हृदयस्थो जनार्दनः।।      116

         सर्वमङ्गळ माङ्गळ्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यंबके देवि नारायणि नमोस्तुते।।         117

शिव नामनि भावितेतन्तरङ्गे  महति ज्योतिषि मानिनीमयार्थे।

दुरितान्यपयान्ति दूरदूरे  मुहुरायान्ति महान्ति मङ्गळानि।।    118 

         मङ्गळं महत्

28)समाप्तिः

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा  बुद्ध्यात्मना वा प्रकृते स्स्वभावात्।

करोमि यद्यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि।।   119

यदक्षर पदभ्रष्टं मात्राहीनन्तु यद्भवेत्। 

तत्सर्वं क्षम्यतां देव नारायण नमोस्तुते।। 120